यह किताब सामाजिक गतिविधियों और स्वयं पर आधारित है। जिसमें बताया गया है कि व्यक्ति क्यों सोचता है? क्या कारण है? क्या मनुष्य अन्य जीवों से अलग है? अगर अलग है तो कैसे? जब मनुष्य को दर्द (पीड़ा) होती है तो उसके सोचने का क्या स्तर होता है? और वह क्या सोचता है? और पीड़ा के दौरान वह कहाँ तक सोच सकता है? क्या मनुष्य अपने अनुभव का अपने जीवन में सही उपयोग करता है या वह करने पर मजबूर होता है। इस किताब के माध्यम से हम अपने जीवन के एक स्तर को पहचान सकते हैं और जिसके मायने अलग अलग हो सकते हैं।